इश्क़ की अधूरी दास्तां

Law life aur multigyan
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Poetry 


इश्क़ की अधूरी दास्तां, कब कहानी बन गयी 

जो कभी चलती थी साथ में वो यादों की परछाई बन गयी

हो गयी थी दोस्ती उजालों से 

वो जाते हुये अंधेरों की सौगात दे गयी 

हर पल, हर कदम पर हमें सहारा देकर 

हमें लड़खड़ाता अकेला छोड़ गयी 

 पहले खुशियों की वजह बन कर 

हमें अकेला कर ज़िन्दगी के हर पल में तन्हाई दे गयी 

जिस सफर को मंजिल तक जाना था 

वो बिन मंजिल के बस राहें बन गयी 

हर पल भरा था ज़िन्दगी से जिसकी वजह से 

वो हर पल की एक सज़ा बन गयी 

ना रही उम्मीद ज़िंदगी से 

मुहब्बत ज़िन्दगी सबसे बड़ी ख़ता बन गयी 



 

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